Property Rights To Daughters – हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1965 भारत में संपत्ति के बंटवारे के नियमों को निर्धारित करता है। इस कानून में 2005 में कुछ बदलाव किए गए थे। अब बेटा और बेटी दोनों को पैतृक संपत्ति में बराबरी का हक दिया गया है। 2005 से पहले विवाहित लड़कियों को संपत्ति में कोई अधिकार नहीं था, लेकिन अब उन्हें भी समान अधिकार मिल गए हैं। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया है जिसमें बताया गया है कि किन लड़कियों को पिता की संपत्ति में हिस्सा नहीं मिलेगा।
एक मामला सुप्रीम कोर्ट से हाईकोर्ट में पहुंचा था। इस मामले में अदालत ने अपना निर्णय सुनाया है। हिंदू उत्तराधिकार कानून के अनुसार, बेटियों को अपने पिता की संपत्ति पर पूरा हक है। लेकिन कुछ खास हालात में, इस फैसले के तहत कुछ बेटियों को पिता की संपत्ति में अधिकार नहीं मिलेगा। इसमें याची का पक्ष भी शामिल है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा
एक तलाक का मामला सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस एमएम सुंदरेश और जस्टिस संजय किशन कौल के सामने आया। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि अगर बेटी की उम्र 20 साल से ज्यादा है और वह अपने पिता से कोई संबंध नहीं रखना चाहती, तो उसे अपने पिता की संपत्ति से अपनी पढ़ाई और शादी के लिए कोई खर्च मांगने का हक नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी ने स्थिति को स्पष्ट कर दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया है कि अगर बेटी का अपने पिता के साथ कोई संबंध नहीं है, तो उसे उनकी संपत्ति पर कोई हक नहीं है। इस मामले में माता-पिता तलाकशुदा हैं। याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। तलाक के इस मामले में कोर्ट ने अनुमति दी है। कोर्ट ने कहा कि यह स्पष्ट है कि पत्नी अपने भाई के साथ रह रही है, जबकि पति उसकी और बेटी की पढ़ाई और अन्य खर्चों का ध्यान रखता है। पति पत्नी को हर महीने 8000 रुपये का अंतरिम गुजारा भत्ता देता है। ऐसे में, अगर बेटी अपने पिता से शादी नहीं करना चाहती, तो उसे उनकी संपत्ति पर अधिकार मांगने का कोई हक नहीं है।
कोर्ट ने ये विकल्प दिए हैं
कोर्ट ने याचिका दायर करने वाले को बताया कि पति पत्नी को सभी दावों के तहत 10 लाख रुपये भी दे सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा कि अगर मां अपनी बेटी की मदद करती है, तो ये राशि मां के पास रहेगी।
पुराना मामला
पति ने जिला अदालत में शिकायत की थी। वहीं से पति के पक्ष में फैसला आया। बाद में पत्नी ने हाईकोर्ट में जाकर तलाक की अर्जी खारिज कर दी। इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा। अब सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया है।